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Sunday 29 January 2017

तुम्हे बना के शेर...........

तुम्हे बना के शेर, मैं ग़ज़ल हो जाऊं.......

तुम्हे बना के सांसें, मैं ज़िंदगी हो जाऊं
तुम्हे बना के दिल, मैं धड़कन हो जाऊँ

तुम्हे बना के शमा, मैं परवाना हो जाऊं
तुम्हे बना के बुत, मैं काफिर हो जाऊं

तुम्हे बना के मंज़िल, मैं रहगुज़र हो जाऊँ 
तुम्हे बना के चिंगारी,  मैं आतिश हो जाऊं

तुम्हे बना के फूल, मैं खुशबु हो जाऊं
तुम्हे बना के ऊंचाई, मैं परिंदा हो जाऊँ

तुम्हे बना के दरिया, मैं मौज बन जाऊं
तुम्हे बना के हुस्न,  मैं नज़ाकत हो जाऊं

तुम्हे बना के शेर, मैं ग़ज़ल हो जाऊं.......

Tuesday 24 January 2017

दो दिन, दो मुलाकातें.......

दो दिन, दो मुलाकातें थीं
दो मुलाकातें, एक ज़िंदगी थी

दो दिल, एक धड़कन थी
दो ख्वाब, एक ताबीर थी
दो आवाज़ें, एक दुआ थी
दो रास्ते, एक मंज़िल थी
दो शरारतें, एक मासूमियत थी

दो मुलाकातें, एक ज़िंदगी थी

दो बादल, एक बिजली थी
दो आँखें, एक नमी थी
दो अफसाने, एक हकीकत थी
दो तमन्नायें, एक इबादत थी
दो दस्तूर, एक बगावत थी
दो इरादे, एक कामयाबी थी

दो मुलाकातें, एक ज़िंदगी थी

दो वायदे,  एक ऐतबार था
दो आगाज़, एक अंजाम था
दो उलफतें, एक जज़्बात था
दो बेचैनियां, एक सुकून था
दो ऐतराज, एक इक़रार था
दो आदाब, एक एहतराम था

दो मुलाकातें, एक ज़िंदगी थी
दो दिन,  दो मुलाकातें थीं...... 

Sunday 22 January 2017

चाहता तो ये था कि ..........

चाहता तो था कि, वो हर रोज़ मिलें
बेवजह और बेहिसाब  मिलें
बेझिझक और बेहिचक मिलें

चाहता तो था कि, वो हर रोज़ मिलें
बेफिक्र और बेखौफ मिलें
बेपरवाह और बेतकलुफ़ मिलें

चाहता तो था कि, वो हर रोज़ मिलें
बिना बंधन और बग़ैर रीतो-रिवाज़ मिलें
बिना सवाल और बग़ैर शक-ओ-शुबह मिलें

पर ये हो न सका.........

अब यूं तो वो हर रोज़ मिलते हैं
सज संवर के और मुस्कुरा के मिलते हैं
बेक़रार और बेहिजाब मिलते हैं
बेखुद और बेखबर मिलते हैं
बिना इजाज़त और दीवानावार मिलते हैं
 
फ़र्क इतना है कि, वो जो हर रोज़ मिलते हैं
मेरे ख्वाबों और  ख़यालों में मिलते हैं
मेरी तन्हाइयों और बेचैनियों में मिलते हैं
मेरे तससवुर और यादों के झरोखों में मिलते हैं

यूं तो वो हर रोज़ मिलते हैं...
यूं तो वो हर रोज़ मिलते हैं...