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Sunday 22 January 2017

चाहता तो ये था कि ..........

चाहता तो था कि, वो हर रोज़ मिलें
बेवजह और बेहिसाब  मिलें
बेझिझक और बेहिचक मिलें

चाहता तो था कि, वो हर रोज़ मिलें
बेफिक्र और बेखौफ मिलें
बेपरवाह और बेतकलुफ़ मिलें

चाहता तो था कि, वो हर रोज़ मिलें
बिना बंधन और बग़ैर रीतो-रिवाज़ मिलें
बिना सवाल और बग़ैर शक-ओ-शुबह मिलें

पर ये हो न सका.........

अब यूं तो वो हर रोज़ मिलते हैं
सज संवर के और मुस्कुरा के मिलते हैं
बेक़रार और बेहिजाब मिलते हैं
बेखुद और बेखबर मिलते हैं
बिना इजाज़त और दीवानावार मिलते हैं
 
फ़र्क इतना है कि, वो जो हर रोज़ मिलते हैं
मेरे ख्वाबों और  ख़यालों में मिलते हैं
मेरी तन्हाइयों और बेचैनियों में मिलते हैं
मेरे तससवुर और यादों के झरोखों में मिलते हैं

यूं तो वो हर रोज़ मिलते हैं...
यूं तो वो हर रोज़ मिलते हैं... 

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