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Monday 29 May 2017

जीने में कुछ कमी सी क्यूँ है.......,

हवा आज कल कुछ थकी सी है, 
शाखों पे पत्ते भी भारी से लगते हैं 
सांसे, हालांकि मजे से आ जा रहीं हैं, 
फिर भी जीने में कुछ कमी सी क्यूँ है 

हँसा करते थे जिन बातों पे, ठहाके लगा कर 
आज हल्की सी मुस्कान भर बची क्यूँ है

तूफान उठा लेते थे, हल्के से नफे-नुकसान पर 
आज सब कुछ लुटा कर भी, इत्मीनान से क्यूँ है

वक़्त के साथ, कदम मिला के चलना थी जिनकी फितरत 
उनकी दीवार पे टंगी घड़ी में, समय रूका सा क्यूँ है 

ज़रा ज़रा से सपने देखे, गिनती के कुछ अरमान पाले
चंद सुलझे हुए रिश्ते और सुकून के कुछ पल मांगे 
ज्यादा तो नहीं चाहा था, ऐ जिंदगी तुझसे 
फिर भी आज ये दामन, सूना सा क्यूँ है

तेरी तारीफें हज़ार, तेरी रहमतें बेहिसाब
तुझसे शिकवा नहीं, तेरे तरीके लाजवाब
फिर भी जब करता हूँ बात, तन्हाई में तुझसे 
न जाने आंखों में, इक नमी सी क्यूँ है 

हवा आज कल कुछ थकी सी क्यूँ है 
जीने में कुछ कमी सी क्यूँ है 

Thursday 18 May 2017

फूलों की खुशबु लिए.........

फूलों की खुशबु लिए, चांदनी में चमकते देखा
ज़िंदगी तुझे प्यार के चटक रँग, फिज़ा में भरते देखा

अजनबी चेहरों से हँस के मिले, प्यार बढ़ा के देखा
यारों से दिल मिलाया, दोस्ती का फर्ज़ निभा के देखा

देखा कि बहारों में खिले फूलों से, गुलज़ार होती है बगिया
ज़िंदगी तेरी रंगीन तबियत को, क़रीब से रंग बदलते देखा

जब भी हाथ बढ़ाया लेकिन, तेरे खुशरंग चेहरे की ओर
तुझे जाने क्यूँ, मुझसे नज़रें बचाते देखा

तेरे प्यार का अहसास तो हमेशा से था
उसे खुल कर सामने आने से झिझकते देखा

ग़र प्यार सच्चा था ऐ ज़िन्दगी, तो इज़हार में इतनी देरी क्यूँ
इंतजार के आलम में हमने, मौसमों को बदलते देखा

खुशियों की मंज़िल तक जाने के रास्ते तो मिले लेकिन
मंज़िल तक पहुंचने में हमने, मंज़िलों को बदलते देखा

तेरे नखरों, तेरी चालाकियों के सामने
मैं मजबूर हूँ, मायूस नहीं, हताश नहीं
अपनी आशाओं को तसल्ली से सहेजा है ऐ ज़िन्दगी
सावन में देर से ही सही, बादलों को बरसते देखा

राहें जब चलते चलते खुद ही थकने लगें
मोड़ जब मनमानी करने को मचलने लगें
ऐसे में तुम मेरी रहबर बन जाओ ज़िंदगी
तुम्हारा साथ से मंज़िलों को पास आते देखा

फूलों की खुशबु लिए, चांदनी में चमकते देखा
ज़िंदगी तुझे प्यार के चटक रँग, फिज़ा में भरते देखा.....


Wednesday 17 May 2017

आज सुबह फिर कुछ.........

आज सुबह फिर कुछ थकी सी थी
रात शायद कुछ जगी सी थी

सितारों से कई गिले शिकवे थे करने
चाँद से भी तो गुफ्तगू बाक़ी थी

जुगनुओं से रौशनी उधार लेना था बाक़ी
अपने सपनों से भी निभानी वफादारी थी

महकती यादों के मोतियों को था पिरोना
दिल में छिपी तस्वीर, ज़ाहिर होना बाक़ी थी

इससे पहले कि अफसानों में हमारे नाम चलें
प्यार की मंज़िल तो अभी पाना बाक़ी थी

छिप के मिलना, मिल के छिपना, ये खेल अब और नहीं
दीवानापन दुनिया पर ज़ाहिर करने की रस्म बाक़ी थी

हिम्मत, जोश, दीवानगी या झिझक
ऐसा कुछ था, जिसमे क़सर बाक़ी थी

न जाने कब रात गयी, कब भोर हुई
आंखों पर नींद की दस्तक, अब भी होना बाक़ी थी

आज सुबह फिर कुछ थकी सी थी
रात शायद कुछ जगी सी थी......

Wednesday 10 May 2017

मुश्किलें जब भी मिलें, मुस्कुरा लेना........

मुश्किलें जब भी मिलें, मुस्कुरा लेना
मुस्कुराना आनंद से जैसे
माशूक ने हंस के इकरार किया हो
मानो आँखों ने ज़न्नत का दीदार किया हो
मुस्कुराना ज़रूर क्यूंकि, मुश्किलें भी घबरा जाती हैं
जब बन्दे के चेहरे पे मुस्कुराहट आ जाती है

अंधियारा जब भी हो,  एक दीपक जला लेना
जलाना विश्वास से जैसे
सूरज अपना प्रकाश फैला रहा हो
मानो उजाला अंधेरे को निगलने की ताक में हो
दीपक जलाना ज़रूर क्यूंकि, घने अंधेरे भी छंट जाते हैं
जब एक नन्हा सा दीपक अपनी रौशनी बिखेर जाता है

नींद जब गहरी आने लगे, एक सपना सजा लेना
सजाना प्यार से जैसे
जीवन की लौ प्रज्वलित हो रही हो
मानो आकांक्षाओं की नदी बह निकली हो
सपना सजाना ज़रूर क्यूंकि, नए रास्ते खुल जाते हैं
जब सपना कोई सपना नया दे जाता है

उम्मीद जब टूटने लगे, एक नयी उम्मीद जगा लेना
जगाना ऐतबार से जैसे
सहस्रों हाथ साथ हो लिए हों
मानो आशाओं के नये बीज अंकुरित हो रहे हों
उम्मीद जगाना ज़रूर क्योंकि, आंदोलन खड़े हो जाते हैं
जब उम्मीद कोई दिल के बेहद करीब हो जाती है

तूफान जब तेज़ आने को हो, कश्ती दरिया में उतार देना
उतारना जज़्बे से जैसे
कश्ती उन्माद से टकराने को तैयार हो
मानो हवाऔं की दिशा मोड़ने को बेकरार हो
कश्ती उतारना ज़रूर क्योंकि, लहरें रास्ता छोड़ देती हैं
जब कश्ती कोई तूफ़ान को चुनौती दे रही होती है  

हार जब सामने दिखे, एक संघर्ष नया अपना लेना
अपनाना दृढ़ता से जैसे
जीवन अपने नए मायने खोज रहा हो
मानो पत्थरों पे नयी लकीरें खींचने को तैयार हो
संघर्ष अपनाना ज़रूर क्योंकि, हार भी सबक दे के जाती है
जब संघर्ष कोई ईमानदारी से निभा रहा होता है

मुश्किलें जब भी मिलें, मुस्कुरा लेना........
मुश्किलें जब भी मिलें, मुस्कुरा लेना........

Sunday 7 May 2017

जब भी देखा है तुम्हे...........

धूप में निकले तो, साये को गायब पाया
जब भी देखा है तुम्हे, अपना सा पाया

प्यार के चटक रंगों से तुम्हे रंग के देखा
महबूब के हाथों में मेंहदी सा रचा पाया

जवानी के जानदार जोश मे भर के देखा
मोहब्बत की किताब के पन्नों में दबा पाया

नन्हे बच्चे की किलकारियों में खो कर देखा
लड़कपन की सुनहरी यादों में भटकता पाया

लड़खड़ाते हुए, महख़ाने से निकलता देखा
साक़ी के दरो दीवार से तौबा करता पाया

जीवन की भागम भाग में मशगूल देखा
खुद को सकून की तरफ भागता पाया

रेल की पटरियों सा साथ साथ चलते देखा
अपना, न मिल सकने वाला साथ, याद आया

दूर तक चिरागों की कतारें जलती देखीं
फिर कोइ मसीहा,कोई पैगंबर याद आया

जब भी देखा है तुम्हे, सजदे मे झुकते हुए
खुद को भी दुआ में हाथ उठाते पाया

धूप में निकले तो, साये को गायब पाया
जब भी देखा है तुम्हे, अपना सा पाया

Thursday 4 May 2017

तेरे होने या न होने से........

कुछ फ़र्क तो पड़ता जीने मे
तेरे होने या न होने से

रात ही रहती, सुबह न होती
सूरज रस्ता भूल ही जाता
बागों से हरियाली, फूलों से खुशबु
गायब ही हो जाती

पक्षी पेड़ों की टहनीयों पर चहकना बंद कर देते
सागर की लहरें किनारों से टकरा कर दम तोड़ना छोड़ देतीं
हवाऐं बंद हो कर जीवन देने की तासीर भूल ही जातीं
नदियां तटों के बीच बहने की मर्यादा तोड़ ही देतीं

दीवारें चल कर मुझ तक आतीं
छतें सरक कर नीचे आ जातीं
ज़मीन भी या तो चलने लगती
ऐसा कुछ भी हुआ नहीं, तेरे न होने से

कुछ फ़र्क तो पड़ता जीने मे
तेरे होने या न होने से

दिल तो वैसे ही धड़ल्ले से धड़कता है
सांसे भी हाइवे की गाड़ियों सी आती जाती हैं
बादल पूरी बेशर्मी से गरजते और बरसते हैँ
मौसमों का बदलना बिना रुके चला जाता है

मंदिरों से घंटियों की, मस्जिदों से अज़ान की
गली में रेहड़ी पर सपने बेचते खिलौने वाले की
घर के पास की लाइन पर से गुज़रती रेलगाड़ी की
रोज की तरह आज भी आती ही हैं अवाज़ें

बारिश के बाद कागज़ की कश्तीयां चलाते ही हैं बच्चे
गर्मियों में आम के दरखतों पे पत्थर मारते ही हैं
सावन में झूले अब भी पड़ते ही हैं
बच्चे पतंग लूटने आज भी दौड़ते ही हैं

होली के रंग अब भी रंगीन है पहले से
दिवाली की रौशनी भी कम नहीं हुई है
जीवन चक्र तो अविरल चल रहा है
थमा नही ये क्षण भर की, तेरे न होने से

कुछ फ़र्क तो पड़ता जीने मे
तेरे होने या न होने से.......