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Sunday 7 May 2017

जब भी देखा है तुम्हे...........

धूप में निकले तो, साये को गायब पाया
जब भी देखा है तुम्हे, अपना सा पाया

प्यार के चटक रंगों से तुम्हे रंग के देखा
महबूब के हाथों में मेंहदी सा रचा पाया

जवानी के जानदार जोश मे भर के देखा
मोहब्बत की किताब के पन्नों में दबा पाया

नन्हे बच्चे की किलकारियों में खो कर देखा
लड़कपन की सुनहरी यादों में भटकता पाया

लड़खड़ाते हुए, महख़ाने से निकलता देखा
साक़ी के दरो दीवार से तौबा करता पाया

जीवन की भागम भाग में मशगूल देखा
खुद को सकून की तरफ भागता पाया

रेल की पटरियों सा साथ साथ चलते देखा
अपना, न मिल सकने वाला साथ, याद आया

दूर तक चिरागों की कतारें जलती देखीं
फिर कोइ मसीहा,कोई पैगंबर याद आया

जब भी देखा है तुम्हे, सजदे मे झुकते हुए
खुद को भी दुआ में हाथ उठाते पाया

धूप में निकले तो, साये को गायब पाया
जब भी देखा है तुम्हे, अपना सा पाया

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