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Monday 27 February 2017

एक आदत सी बन गयी है.........

तुमसे मिलने को बेताब होना
और मिलते ही बेबाक हो जाना
एक आदत सी बन गई है

अपने सवालों को बुनना, बनाना
तुम्हारे जवाबों का मुरीद हो जाना
एक आदत सी बन गई है

तुम्हारी ना पे मर मिटना
और हां पे ज़िंदा हो जाना
एक आदत सी बन गई है

तेरी नज़रों के मस्त जाम पी के
मस्ती में लड़खड़ाना
एक आदत सी बन गई है

तुम्हारा नाम रेत पे लिखना
और उसे लहरों से मिटते देखना
एक आदत सी बन गई है

भीड़ में खुद को तन्हा पाना
और तन्हाई में तुम्हे भूल न पाना
एक आदत सी बन गई है

हवाा के हलके, मस्त झोकों मे
तुम्हारे कदमो की आहट तलाशना
एक आदत सी बन गई है

हसीन यादों को सीने से लगा के
तुम्हारे बारे में सोच के मुस्कुराना
एक आदत सी बन गई है

इबादत में तुम्हे याद करना
और याद करके आंसू बहाना
एक आदत सी बन गई है

ग़म में,  खुशी में,  जीवन के हर रंग में
अपने को तुम्हारे ही रंग में भीगा पाना
एक आदत सी बन गई है

अपनी जिंदगीयां, नदी के दो पाटों सी हैं
इस दूरी, इस मजबूरी को हर बार भुला देना
एक आदत सी बन गई है

प्यार,  मोहब्बत,  इकरार और इज़हार
इन जज़्बातों को तुम्हारा नाम दे देना
एक आदत सी बन गई है

पतझड़ में सूखे,  बेजान पत्तों पर चलना
और बहार का इंतज़ार करना
एक आदत सी बन गई है

एक आदत सी बन गई है........ 

Tuesday 7 February 2017

मज़ा तो तब है........

मज़ा तो तब है
जब अंखियां हो चार
जब दोनो में हो कऱार
जब सावन की पहली हो फुहार
जब प्यार का हो इज़हार
जब मिलने को वो भी हों बेक़रार

मज़ा तो तब है
जब खुद पे हो ऐतबार
जब ख्वाबों में हो मंज़िल हर बार
जब पैरों की बेड़ियाँ हो जा़र जा़र
जब मंज़िल को हो अपना इन्तज़ार
जब ऊपर वाला भी हो मेहरबान

मज़ा तो तब है
जब अपनों और परायों की हो जाए पहचान
जब दोस्तों और दुश्मनों को हम पायें जान
जब हर मिलने वाले को दे पाते 'अपने' का नाम
जब आस्तीन के सांपो का बुरा हो अंजाम

मज़ा तो तब है
जब रंगो की हो फुहार
और रंग हो चटकदार
जब दीपो की हो कतार
जब बागों में हो बहार
जब हर दिन हो एक नया त्योहार
जब कौमों में हो आपसी प्यार

मज़ा तो तब है
जब जनता को सियासी चालबाज़ियां आ जायें समझ
जब मुफलिसी, नफरत और अलगाववाद का हो अंत
जब विश्व शांति का बन जाये सबब़
जब दरियादिली भी हो एक मज़हब

मज़ा तो तब है......... 

Saturday 4 February 2017

तो कोई बात बने......

प्यार जब हद से गुज़र जाये तो कोई बात बने
दिलबर झूम के आगोश में आये तो कोई बात बने

साकी़ जब आंखों से पिलाये तो कोई बात बने
उम्र भर होश न आये तो कोई बात बने

दिल की बात बिन कहे समझ जाएं तो कोई बात बने
रुख से वो ज़रा नक़ाब हटायें ते कोई बात बने

आंखें जो असली सूरतें दिखायें तो कोई बात बने
प्यार जब हद से गुज़र जाये तो कोई बात बने

दोस्त कोई दिल में उतर जाये तो कोई बात बने
दुश्मन जब अपनी पे उतर आये तो कोई बात बने

ख्वाब कोई हकीकत में बदल जाये तो कोई बात बने
भूला गर भूल के घर वापस आये तो कोई बात बने

बारिश जब आंगन भिगो जाए तो कोई बात बने
मां जब सीने से लगा ले तो कोई बात बने

प्यार,  दोस्ती,  ईमान और इबादत
ये जज़्बात गर सुकून दे जायें तो कोई बात बने

प्यार जब हद से गुज़र जाये तो कोई बात बने.....