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Saturday 24 June 2017

हमारी आह में शायद..........

हमारी आह में शायद असर बाक़ी नहीं
बारिश इसीलिए जल्दी आती नहीं

उम्मीदें हर सुबह ताज़ी अंगड़ाईयां लेतीं
जम्हाईयां बदलते मौसम का शुबहा करातीं
मासूम आंखें, ढके आसमान को तकती हैं
पर बारिश तो अपने शहर जल्दी आती नहीं

बादलों को किसी और गली, किसी और शहर जाना था
उन्हें किसी और छत का कर्ज़ निभाना था
हमने आँखों से उमड़ते दरिया को रोके रखा
पर बारिश तो हमारे पते पर बेदर्दी आती नहीं

बादल दिखते हैं मस्ताने, मतवाले
पर होते हैं सख्त सयाने
झलक दिखला के सरक लेते हैं
उस घर को पहले भिगोते हैं
जिसमे होते हैं दिलजले आशिक़ पुराने
हमारी आह में शायद असर बाक़ी नहीं है
बारिश इसीलिए जल्दी आती नहीं है

चिलचिलाती धूप, गर्म हवाऐं, मुरझाते फूल
तलहटी झलकाते ताल,
पानी को तरसते खेत, मरुस्थल में सुलगती रेत
सभी की है गुहार, मेघ अब तो बरस जाओ
लेकिन जो बादल को बरसने पर मजबूर कर दे
वो दिल में निकलती, आह तो ढूंढ के लाओ
हमारी आह में शायद असर बाक़ी नहीं है
बारिश इसीलिए जल्दी आती नहीं है

हमारी आह में शायद......... 

Saturday 10 June 2017

क्या है वो अजनबी, अनजाना, अनूठा.......

क्या है वो अजनबी, अनजाना, अनूठा
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा

धरती और गगन के मिलन के पार
उस खूबसूरत से क्षितिज के बाद
अनदेखी अनसुनी वादियों में गूंजता
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा

इन्द्रधनुष जहां पैदा हुआ करते होंगे
बादल जहां जन्म लेते होंगे शायद
आसमां से ऊपर, कोई चमत्कारी नज़ारा
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा

उजालों से उजला उजाला, अँधेरे से काला अंधेरा
गहराईयों से गहरी गहराईयां, ऊंचाइयों से ऊंची ऊंचाईयां
नापी जा सकने वाली दूरियों से दूर
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा

सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी
असंभव लेकिन चिर सम्भव
मिटता नहीं, सिमटता नहीं
दिखता नहीं, लेकिन गायब नहीं
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा

नवीनता का सर्जक भी, पालक भी, संहारक भी
ढूंढो तो जीवन गुज़र जायें, देखो तो क्षण में पा लो
फलसफों की हद से दूर, एक ही है वो हुज़ूर
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा

क्या है वो अजनबी, अनजाना, अनूठा
थोड़ा छिपा, थोड़ा ज़ाहिर, कुदरती अजूबा