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Saturday 25 March 2017

ऐ दिल ना पूछ अरमान मेरे..........

ऐ दिल ना पूछ अरमान मेरे
आसमां पर लिख के नाम दिलबर का
उसे रौशनी से नहलाना चाहता हूं

अरमान तो है कि
एक शहर हो अपनो का
सीधे और सादे सपनों का
बेघर जहां फुटपाथ पे सोते ना हों
झुग्गियां जहां बेबसी समेटती न हों
शहर एक ऐसा ढूंढ कर
तस्वीर में उसे कैद कर
दीवार पर टांगना चाहता हूं
ऐ दिल ना पूछ अरमान मेरे

अरमान तो है कि
एक घर हो अपना सा
दरवाज़ा हो मोहब्बत सा
और दीवारें हों एतबार सी
बस्ते हों खुशनुमा अहसास जहां
जज़्बात ही बन जायें पहचान जहां
रिश्ते वहां सिर्फ़ नाम के न हों
अपने जहां सिर्फ़ काम के न हों
घर एक ऐसा ढूढ़ कर
आंखों मे उसे बसा कर
दिल में उतारना चाहता हूं
ऐ दिल ना पूछ अरमान मेरे

अरमान तो है कि
एक उम्र हो बचपन सी
अल्हड़ सी,  बेफिक्री सी
मासूमियत जिसमे बिखरी हुई हो
कल्पना की जहाँ कोई सीमा न हो
अपने परायों में भेद न हो
ऊंच - नीच का द्वेष न हो
मंज़र एक ऐसा सजा के
आँखों में बसाना चाहता हूं
ऐ दिल ना पूछ अरमान मेरे

 ऐ दिल ना पूछ अरमान मेरे
आसमां पर लिख के नाम दिलबर का
उसे रौशनी से नहलाना चाहता हूं

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