देख कर दुनिया के नज़ारे सारे
हमने इन्सानियत के नाम से तौबा कर लीदेख कर रंगत मयखानो की
जहां शामें जवां हुआ करती हैं
हमने वो न ली हुई कसम तोड़ कर
साक़ी और पैमाने से दोस्ती कर ली
हम ने देखी है शान शहीदों की चिताऔं की
जहां मेले आज भी लगा करते हैं
उन्होने छोड़ कर सुख और आराम अपने
देश के सपनों के सुपुर्द, जवानी कर दी
देख कर गरीबी के वो धुंधले उजाले
जहां भूख भी उदास सोती है
हमने उस एक पल की वजह से
ताउम्र, देखने से तौबा कर ली
देख कर मंदिर और शिवालय इनके
और मस्जिद और मज़ारें उनकी
हमने उस ऊपर वाले की रज़ा से
रस्म - ए - इबादत से तौबा कर ली
देखा है इंसान को लहु का प्यासा होता
अपनों की खुशियो को गिरवी रखता
देख कर दुनिया के नज़ारे सारे
हमने इन्सानियत के नाम से तौबा कर ली
देख कर दुनिया के नज़ारे सारे
हमने इन्सानियत के नाम से तौबा कर ली
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