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Friday 24 March 2017

कभी हँस कर, कभी रो कर.....

कभी हँस कर, कभी रो कर
जीया है तुम्हे ऐ ज़िन्दगी

किसी की मुस्कुराहट पे जी कर
किसी के शर्माने पे मर कर
किताबों में रखे उन सूखे फूलों की
कसम ले कर
कभी जी कर, कभी मर कर
जीया है तुम्हे ऐ जिंदगी

किसी के वादों पे जी कर
किसी के निभाने पे मर कर
उन सहमी हुई मुलाकातों की
यादों को सहेज कर
कभी जी कर, कभी मर कर
जीया है तुम्हे ऐ जिंदगी

किसी की नफरत में जी कर
किसी के प्यार में मर कर
डायरी के पन्नों पर स्याही के बिखराव को
एक कहानी की शक्ल दे कर
कभी जी कर, कभी मर कर
जीया है तुम्हे ऐ जिंदगी

किसी के सितम पे जी कर
किसी की रहमतों पे मर कर
उन खामोश मजबूरियों के
अहसास को समेट कर
कभी जी कर, कभी मर कर
जीया है तुम्हे ऐ जिंदगी

किसी से बिछड़े हैं जी कर
किसी से मिलेंगे मर कर
इस मिलने और बिछड़ने के
अहसास में डूबकर
कभी जी कर, कभी मर कर
जीया है तुम्हे ऐ जिंदगी

कभी हँस कर, कभी रो कर
जीया है तुम्हे ऐ ज़िन्दगी

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