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Thursday 4 May 2017

तेरे होने या न होने से........

कुछ फ़र्क तो पड़ता जीने मे
तेरे होने या न होने से

रात ही रहती, सुबह न होती
सूरज रस्ता भूल ही जाता
बागों से हरियाली, फूलों से खुशबु
गायब ही हो जाती

पक्षी पेड़ों की टहनीयों पर चहकना बंद कर देते
सागर की लहरें किनारों से टकरा कर दम तोड़ना छोड़ देतीं
हवाऐं बंद हो कर जीवन देने की तासीर भूल ही जातीं
नदियां तटों के बीच बहने की मर्यादा तोड़ ही देतीं

दीवारें चल कर मुझ तक आतीं
छतें सरक कर नीचे आ जातीं
ज़मीन भी या तो चलने लगती
ऐसा कुछ भी हुआ नहीं, तेरे न होने से

कुछ फ़र्क तो पड़ता जीने मे
तेरे होने या न होने से

दिल तो वैसे ही धड़ल्ले से धड़कता है
सांसे भी हाइवे की गाड़ियों सी आती जाती हैं
बादल पूरी बेशर्मी से गरजते और बरसते हैँ
मौसमों का बदलना बिना रुके चला जाता है

मंदिरों से घंटियों की, मस्जिदों से अज़ान की
गली में रेहड़ी पर सपने बेचते खिलौने वाले की
घर के पास की लाइन पर से गुज़रती रेलगाड़ी की
रोज की तरह आज भी आती ही हैं अवाज़ें

बारिश के बाद कागज़ की कश्तीयां चलाते ही हैं बच्चे
गर्मियों में आम के दरखतों पे पत्थर मारते ही हैं
सावन में झूले अब भी पड़ते ही हैं
बच्चे पतंग लूटने आज भी दौड़ते ही हैं

होली के रंग अब भी रंगीन है पहले से
दिवाली की रौशनी भी कम नहीं हुई है
जीवन चक्र तो अविरल चल रहा है
थमा नही ये क्षण भर की, तेरे न होने से

कुछ फ़र्क तो पड़ता जीने मे
तेरे होने या न होने से.......

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