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Monday 29 May 2017

जीने में कुछ कमी सी क्यूँ है.......,

हवा आज कल कुछ थकी सी है, 
शाखों पे पत्ते भी भारी से लगते हैं 
सांसे, हालांकि मजे से आ जा रहीं हैं, 
फिर भी जीने में कुछ कमी सी क्यूँ है 

हँसा करते थे जिन बातों पे, ठहाके लगा कर 
आज हल्की सी मुस्कान भर बची क्यूँ है

तूफान उठा लेते थे, हल्के से नफे-नुकसान पर 
आज सब कुछ लुटा कर भी, इत्मीनान से क्यूँ है

वक़्त के साथ, कदम मिला के चलना थी जिनकी फितरत 
उनकी दीवार पे टंगी घड़ी में, समय रूका सा क्यूँ है 

ज़रा ज़रा से सपने देखे, गिनती के कुछ अरमान पाले
चंद सुलझे हुए रिश्ते और सुकून के कुछ पल मांगे 
ज्यादा तो नहीं चाहा था, ऐ जिंदगी तुझसे 
फिर भी आज ये दामन, सूना सा क्यूँ है

तेरी तारीफें हज़ार, तेरी रहमतें बेहिसाब
तुझसे शिकवा नहीं, तेरे तरीके लाजवाब
फिर भी जब करता हूँ बात, तन्हाई में तुझसे 
न जाने आंखों में, इक नमी सी क्यूँ है 

हवा आज कल कुछ थकी सी क्यूँ है 
जीने में कुछ कमी सी क्यूँ है 

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